Thursday, 23 June 2022

(व्यंग्य भारती) ,"नेता गिरा तराज़ू में "

"व्यंग्य भारती "

       "नेता गिरा तराजू में"

        मानसून घर से निकल चुका है! इधर मानसून निकला उधर एकनाथ शिंदे ने पिंजरा उठाया, बागी नेताओं को पिंजरे में डाला और मिल्खा सिंह की रफ्तार से सूरत निकल भागे ( नज़दीक में और कोई अभयारण्य नही नज़र आया!) जैसे ही 'गढ़ आला ' की खबर मिली, मीडिया मुगल सोहर गाने लगे, दुख भरे दिन बीते रे भैया, सतयुग आयो रे ! बाला साहेब वाला। हिंदुत्व लायो रे '! शिन्दे के इस महान् कृत्य पर छाती पीटने वालों के खिलाफ फेसबुकिया योद्धाओं की पूरी पलटन सोशल मीडिया पर उतर आई! महाराष्ट्र और रामराज के बीच की दूरी घटती देख सारे 'देवता' वरदान देने को आतुर थे ! 
       दिव्य मीडिया उद्घव ठाकरे के कर्मपत्र पर टिप्पणी कर रही थी,- ' महाराष्ट्र में कोरोना और कानून व्यवस्था दोनों की हालत खराब हो गई थी '!
उधर एकनाथ शिंदे ने सच्चे समाज सुधारक होने का परिचय देते हुए बयान दिया,- मैं महाराष्ट्र में बाला साहेब ठाकरे वाला हिंदुत्व लाना चाहता हूं "!
और क्या चाहिए! (इसके बाद विकास के लिए और कुछ बचता ही नहीं !) अज्ञातवास काट रहे पांडव प्रमुख मीडिया को बयान देने लगे, - सत्य परेशान हो सकता है, पर सिंहासन से दूर नहीं रह सकता! अब सतयुग आएगा कलियुग जायेगा -!!
     विपक्ष विलाप कर रहा है ! वह हृदय परिअर्तन को हॉर्स ट्रेडिंग कह रहा है! हृदय परिवर्तन पर इतनी हाय तौबा क्यों! ऐसा मानसून तो तुम्हें भी खूब रास आता था ! परिभाषा तो आपने ही सिखाई थी भ्राता श्री -समरथ को नहिं दोष गुसाईं-!
ये जो हृदय है न, i समर्थन के लिए काम, परिवर्तन के लिए ज़्यादा व्याकुल रहता है । अनुकूल मानसून पाते ही प्राणी की आस्था समर्थन के पलड़े से कूदकर  विरोधी  से  गलबहियां होकर गाने लगती है, - ' तुमसे मिलने को जी करता है रे बाबा -' अब चाहे मां रूठे या पापा यारा मैंने तो हां कर ली '!
     सियासत में हृदय परिवर्तन एक शाश्वत परंपरा है! पक्ष विपक्ष दोनों चुनाव के बाद तराजू लटका कर ऑफर वायरल कर देते हैं, ' खुला है मेरा पिंजरा आ मोरी मैना -'! मैना सूटकेस का साइज देखती है और आत्मा की आवाज़ से टेली करती है! आत्मा पर चढ़ी कार्बन की मोटी परत से आवाज़ आती है, - ' साक्षात गंगा स्नान का ऑफर है, स्वीकार कर ले !पाप धुल जाएंगे '-!! प्राणी का फौरन हृदय परिवर्तन हो जाता है, और एक घंटे बाद वो प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताता है, ". उस पार्टी में अभिव्यक्ति की आज़ादी का ऑक्सीजन लेवल बहुत कम था , सांस घुट रही थी ! अब ऑक्सीजन की मात्रा और आत्मसंतुष्टि दोनों में आत्मनिर्भर हो चुका हूं! गोवा है तो भरोसा है!"
         सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी में चहल पहल बढ़ गई है । पक्ष विपक्ष के वीर विद्वान ज्ञान पंजीरी बांट रहे हैं! ज्यादातर विद्वान  महाराष्ट्र में कोरोना और कलियुग के लिए उद्धव ठाकरे को दोषी मान रहे हैं! कुछ सोशल मीडिया इतिहासकार कंगना रनौत के ऊपर हुए जुल्म को इस बगावत से जोड़ रहे हैं!. ऐसा लग रहा है किअगर अब भी बगावत न होती तो महाराष्ट्र गुफा युग में चला जाता ! शुभ मुहूर्त में हुए शिंदे के हृदय परिवर्तन से सत्य और न्याय का रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हो पाया, और बाला साहेब  वाले हिंदुत्व की वापसी का मार्ग प्रशस्त हुआ ! आगे  का काम  'मार्ग दर्शक'  महापुरुषों  का है !
     
     हृदय परिवर्तन हो चुका है, अब आत्मा परमात्मा से मिलने के लिए व्याकुल है! आत्मा ही स्वामिभक्ति या बगावत के लिए ज़िम्मेदार है। आत्मा ही हृदय परिवर्तन कराती है और आत्मा ही बगावत ! इतनेअपराध करने वाली आत्मा को न तो आग जला सकती है न सुनामी डुबा सकती है ! क्योंकि आत्मा तो अजर अमर है! प्राणी नश्वर है ।(इन्ना लिल्लाहे वा इन्ना इलैहे राजेऊन) जो नश्वर है उसकी कोई गलती नहीं, जो सारी खुराफात की जड़ है उस आत्मा का कोई दोष नहीं।

             क्या करें, आत्मा है कि मानती नहीं !!

       

Thursday, 16 June 2022

"नफ़रत के सलीब पर टंगा इंसाफ"

"अग्नि दृष्टि"

   "नफरत के सलीब पर टंगा भाईचारा"

        आखिर 'एक जुर्म' के दो मापदण्ड कैसे हो सकते हैं ! संविधान सम्मत सजा तो एक ही होनी चाहिए, बेशक गुनहगार किसी भी जाति या संप्रदाय का क्यों न हो ! सबके खून का रंग एक है तो नागरिक मूलभूत अधिकार और सुविधाएं भी सबके लिए एक जैसी हैं ! न्याय भी सबके लिए एक तरह का है । लेकिन लगता है कि न्याय पालिका,कार्यपालिका, विधायिका और ( अधिक तर) मीडिया की सोच और संवेदनाएं इस न्यायिक अधिकार से मेल नहीं खाती!
          नूपुर शर्मा और नवीन कुमार जिंदल की जहरीली सोच और जबान ने पूरे देश और दुनियां मे बारूद छिड़क दिया है! सामाजिक और राजनैतिक रिश्तों की अग्नि परीक्षा शुरू हो चुकी है! चैनलों पर बैठे गैर जिम्मेदार लोगों ने आखों पर धृतराष्ट्र का चश्मा लगा लिया है ताकि सच से दामन बचा रहे ! नूपुर शर्मा और जिंदल के गुनाह पर चुप्पी और पत्थरबाजी पर तुरंत बुलडोजर की हिमायत करने वाले मीडिया महावीर मासूम लोगों के कत्ल पर भी मुंह सिले बैठे हैं! सचमुच प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ अपने सबसे बुरे संक्रमणकाल से गुजर रहा है।!
          देश से विदेश तक बवाल और नमाजियों पर ड्रोन की नज़र ! आस्था कही इतनी संवेदनशील कि प्रोफेसर रतनलाल को जेल के अंदर पहुंचा दे, तो,,,, वही आस्था कहीं इतनी कुपोषित हो जाती है  कि ' अल्लाहु अकबर' कीआवाज उठाने पर गोली,जेल और बुल्डजर का तोहफा दिया जाता है ! दूसरी तरफ,,,सच न बोलने की शपथ लेकर चैनल्स पर बैठे नफ़रत के तीरंदाज सिर्फ चारण बन कर रह गए हैं!
        और अब अग्निवीर ! चार दिन में खरबों रुपए की सरकारी  संपत्ति राख कर देने वाले भावी अग्निवीरो के 'मासूम गुनाह' देख कर बुल्डोजर कोमा में पड़ा है ! चैनलों पर बैठे जिम्मेदार वीर पुरुष इन "भटके हुए"."अपने बच्चों"  की घर वापसी के लिए घनघोर चिंतित हैं ! समझ में नहीं आ रहा है कि अग्निपथ के लिए कांग्रेस को किस तरह जिम्मेदार ठहराया जाए ! सच की बिल्ली देखकर कबूतर की तरह आंख बंद कर लेने वाला मीडिया आग में जलती रेल की जगह. कैमरा राहुल गांधी पर फोकस किए बैठा है ! राहुल गांधी का जुर्म जलती रेल से भी कहीं ज़्यादा बड़ा है !
        तीन दिन बाद अग्निवीर भरती के लिए खड़े मिलेंगे ! अग्निपथ पर चलकर अग्नि (कांड) कर चुके अनुशासित अग्निवीर प्रैक्टिकल में पास हो चुके है ! रहा उनके स्वर्णिम भविष्य का सवाल तो वो चार साल बाद देखा जायेगा।.( अभी से इस योजना में घुन तलाशना ठीक नहीं होगा)!.  वैसे अग्निपथ के कार्पेट पर हुए अग्निकांड के दौरान पुलिस और प्रशासन को कहीं भी "पत्थरबाजी" जैसा "अक्षम्य अपराध" नहीं नज़र आया जिसके लिए बुल्डोज की जरूरत पड़ती !
       बीस जून को अग्निपथ के विरोध में भारत बंद रहा ! (विपक्ष इस बंद में भीअपने लिए ऑक्सीजन तलाशता रहा ! ) इस तरह की राष्ट्रीय समस्याओं पर सर्व दलीय मीटिंग बुला कर सर्व सम्मति से समाधान पर सहमति तलाशी जाए ! 
    आखिर में, सवाल नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल पर आस्था का दोहरा माप दंड और दर्द को देखने का दोहरा अंदाज़ पर न्यायपालिका कब अपनी चुप्पी तोड़ेगी! बाबरी मस्जिद पर आए सुप्रीम फैसले में स्वीकार किया गया कि मस्जिद के नीचे कोई मंदिर नही था ! फिर भी मुस्लिम कानून का एहतराम करते हुए सब्र कर गए ! और अब,,,, पैगंबर मुहम्मद ( स अ स) की शान में गुस्ताखी!! इसे संयोग समझा जाए या  मुसलमानों की सहनशीलता नापने का) प्रयोग ! इस्लाम और उनके अज़ीम पैगंबर पर अभद्र टिप्पणी से आख़िर हासिल क्या होता है !!
         मुसलमान होने के एक बेसिक शर्त है कि ,- ' मुहम्मद से मुहब्बत दीन ए  हक़ की शर्ते अव्वल है ! इसी में हो अगर खामी तो सब कुछ  'लामुकम्मल' है -'!!
      धार्मिक  आस्था में वैराईटी नही होती,हर धर्म के अनुयाई की आस्था का सम्मान होना चाहिए ! लकुम दीनकुम वल्या दीन-.का पालन करने वाले मुस्लिम यही अपेक्षा दूसरों से भी रखते हैं। सच्चाई,सहस्तित्व,सौहार्द, शुजाअत (शूरवीरता) हुब्बलवतनी।( देशप्रेम) और शहादत के लिए विश्व भर में विख्यात कौम 
हर जुल्म को इम्तिहान समझ कर सब्र कर सकती है पर पैगंबर ए इस्लाम की शान में गुस्ताखी कभी बर्दाश्त नहीं होगी।

इसलिए,आस्था और दर्द के लिए दो अलग अलग मापदण्ड नही होने चाहिए.!!

 ।।।    ( सुलतान भारती)   ।।।