अब हंगामा है क्यों बरपा , गाड़ी ही तो पल्टी है! काहे छाती पीटते हैं, क्या भारतीय पुलिस ने पहली बार ऐसा कोई कारनामा अंजाम दिया है जो उसके चरित्र की शाश्वत परंपरा के विपरीत है ! तब काहे शीत निद्रा से उठ बैठे मान्यवर !
कालिदास जीवित होते तो आज गाड़ी के पलटने की इस मोहक अदा पर लिखते -" गाड़ी पलटी- आया बसंत "! ( बेशक जुलाई में बसंत का नहीं कोरोना का क्लाइमैक्स चल रहा है, किंतु गाड़ी के पलटने से कई महारथियों की कुंडली पलटने से बच गई , और द्रुत गति से आता हुआ पतझड़ बसंत में बदल गया !)
कुछ अति बुद्धिजीवी प्राणियों ने इस बात पर भी सवाल उठाया कि उज्जैन में तथाकथित पकड़े जाने पर विकास दूबे ज़ोर ज़ोर से चिल्ला कर ये क्यों कह रहा था कि-' मै विकास दुबे हूं, कानपुर वाला ?' क्या वाहियात सवाल है! अरे भैया, देश में एक और मोस्ट वांटेड ""विकास" है - जिसे पिछले कई सालों से विपक्ष तलाश रहा है ! वह भी नजर नहीं आ रहा है! दूबे ने सोचा होगा कि कहीं वहीं विकास समझ कर भीड़ ने छोड़ दिया तो आत्मसमर्पण खटाई में पड़ जायेगा ! इसलिए उसने ज़ोर देकर कहा " कानपुर वाला"! शंका समाधान ज़रूरी था!
गाड़ी उज्जैन से चली तो गाड़ी ठीक थी, लेकिन गाड़ी वालों का जिया बेकरार था! बार बार "आकाशवाणी" हो रही थी- " आगे दिशा शूल है"! लेकिन मध्य प्रदेश की सीमा तक सड़क एयरपोर्ट के रनवे की तरह ए वन थी , लिहाज़ा चाहकर भी गाड़ी पलट ना सकी ! गाड़ी के पलटने में एक और गतिरोध था, पीछे पीछे मीडिया की गाड़ियां सा रही थीं !
और फिर,,,, वो घड़ी आ गई जब गाड़ी को पूरी श्रद्धा से पलटना था। कानपुर आ चुका था, पहुंची वहीं पे ख़ाक जहां का खमीर था! विकास दूबे और कानपुर सामने सामने थे । स्थानीय पुलिस ने मीडियकर्मियों की गाड़ियों को रोक दिया ताकि विकास दूबे वाली गाड़ी बगैर घबराहट के उलट सके ! शुभ मुहूर्त आ चुका था, लिहाज़ा गाड़ी ने पूरे भक्तिभाव से उलट कर पटकथा पूरी की ।
गाड़ी पलटी तो विकास दूबे की बुद्धि उछल कर बाहर जा गिरी । उसने "मेजबान" का ही रिवाल्वर छीन कर बुलडोजर से गिराए गए अपने घर की ओर दौड़ लगा दी। एस टी एफ वालों को मेहमान की ये हरकत पसंद नहीं आई, लिहाज़ा ललकारा। ऐसे सीक्वेंस में विकास दूबे ने वही किया जो हर मरने को लालायित अपराधी करता है, उसने पुलिस पर गोली चलाई । एस टी एफ द्वारा "आत्म रक्षा" में चलाई गई गोली से विकास दूबे मारा गया! ( दर असल- यूपी पुलिस जब भी आत्मरक्षा में गोली चलाती है, वो हमेशा निशाने पे लगती है ! पता नहीं विकास दूबे के घर पर गई पुलिस की गोली उस दिन कैसे चूक गई थी !)
अथ श्री विकास दूबे कथा,,,,,,लेकिन एक ज़िक्र के बग़ैर विकास दूबे की कथा अधूरी रह जाती है। जिस वक्त पुलिस और सियासत का पाला हुआ भस्मासुर विकास दूबे अपने घर पर गई पुलिस पार्टी पर गोली चला रहा था तो घायल और घिरे पुलिस वालों ने चिल्ला कर कहा था, " हमें मत मारो! हमें मारोगे तो तुम मारे जाओगे "! ये शब्द अपराध और प्रशासन की गठजोड़ का खुलासा है! पुलिस वालों के इस कथन का एक सीधा मतलब ये है कि - पुलिस के अलावा तुम किसी को भी मार दो , बच सकते हो! मगर पुलिस को मार कर नहीं ! थाने में विधायक की हत्या करने के बाद भी साठ मुकदमों का घोषित अपराधी ज़मानत पर घूम रहा था
तो,,,, भस्मासुर विकास दूबे मारा गया ! मिशन पूरा हुआ !लेकिन एक यक्ष प्रश्न उठता है- क्या गारंटी है कि भविष्य में पुलिस और प्रशासन के कुछ घिनौने चेहरे अपने आर्थिक, सामाजिक और सियासी मक़सद के लिए फिर किसी देसी बहेरी आम को जुर्म की दुनियां का " दशहरी आम" नहीं बनाएंगे,- विकास दूबे की तरह !!
( - सुलतान भारती )
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