Friday, 29 August 2025

[व्यंग्य चिंतन] आवाज दो कहां हो ,,,,,, !

                    व्यंग्य 'चिंतन'

             आवाज दो कहां हो  ,,,,,! 

       अभी मुश्किल से 3 महीने पहले ही  तो मिला था ! चमकता हुआ और खूबसूरत , पहली नजर में ही दिल तक उतर जाने वाला ! वो कुछ इस कदर मनभावन था कि देख कर ही आँखों को आराम और सुकून हासिल हुआ धा ! मैंने तो ख्वाब में भी नही सोचा था कि महज तीन महीने बाद ही वो इस तरह मेरी नजरों से अचानक ओझल हो जायेगा ! इस  आकस्मिक  घटना से  मैं अभी भी सकते मेें था !   बीती रात ठीक से नींद नही आई ! बार बार उसकी मोहिनी तस्वीरआंखों के सामने आती रही !  मेरे दिल दिमाग पर  कितनी गहरी ठेस पहुंची थी ! अभी मुश्किल से 24 घंटा पहले की तो बात है!
       असल में कल (28 अगस्त)  मस्जिद के सामने से मेरे जूते चोरी हो गये ! 
        मस्जिद की सीढियों पर जूते उतार कर मै 'जुहर' की नमाज पढ़ने अन्दर गया' और जब वपस आया तो मेरे जूते, सुखमय भविष्य की तरह, गायब थे ! जब जूते उतारे थे, तब मै पुतिन की तरह युवा लग रहा था, और अब जूताविहीन होकर  डोनाल्ड ट्रंप की तरह जबर्दस्ती सामान्य नज़र आने की असफल कोशिश कर रहा था !   पैर मे मौजूद सफेद मोजे जैसे मेरा मज़ाक उडाते हुए मुझ पर तंज कर रहे थे,- "मियां ! तुम तो पत्रकार हो ! और लिखो स्मैकियों के खिलाफ-! लगता है जैसे इस जूते के अलावा बैंक एकाउंट में कोई मोह माया नही' थी " ! मेरे सामने विकट समस्या घर लौटने की थी ! हालाकि मस्जिद और मंदिर दोनों नज़दीक थे, किन्तु मुझे  जूता तो क्या, पुरानी चप्पल तक चुराने का तजुर्बा नहीं था ! सिर्फ मोजा के साथ घर  लौटना,,, सरेआम  अपना जुलूस निकालने  जैसा था ! कॉन्फिडेन्स, कबीर के कंबल की तरह लीक हो रहा था ! जूता खोकर मै ऐसा महसूस कर रहा था, गोया 50% टेरिफ का सारा असर पहले ही दिन मुझ पर ही आ गया हो ! 
        मै दुआ मांग रहा था कि घर का दरवाजा आज बेगम न खोलें ! मगर किस्मत इतनी बढिया होती तो जूते पैर मेें होते ! दरवाज़  खुला, अस्त व्यस्त, पसीने मे तरबतर मुझे देखकर वो दंग ! जैसे किसी गंदे नाले का उद्घाटन करके लौटा हूं ! उस वक्त मैं सुदामा की तरह दीन और पत्नी कृष्ण जी की तरह 'दीनदयाल' लग रही थी !(धोती फटी सिलटी दुपटी, अरु पैर उपानह,,, की सजीव झांकी थी !)  पत्नी ने ऊपर से नीचे तक मेरी दुर्गति का एक्स रे करते हुए हैरत से पूछा, -' जूते किसने छीन लिए-?'
   मैने सफाई दी, -' मस्जिद के सामने से चोरी हो गये, नमाज पढने गया था" ! 
   मस्जिद और नमाज के नाम से मुझे जैसे पैरोल   मिली ! नहा धोकर अभी सुकून की साँस भी नहीे ले पाया था कि वर्मा जी आ गये ! उनकी आंखो में खुशी और चेहरे पर जबर्दस्ती ओढ़ी हुई मायूसी देखते ही मै समझ गया कि उन्होंन बगैर जूतों के मुझे घर लौटते हुए देख लिया था ! पास में बैठते हुए बोले,- ' पड़ोसी और मित्र से दुख बांटने से मन हल्का होता है, बाई द वे,,,,हुआ क्या था' ?
     " कुछ नही' !
   वो बङी क्रूरता से मुस्कराये, -' जब भाभी जी तुम्हें डांट रही थीं,  मै  नीचे सीढियों  पर ही खङा था ! लोगाें ने सिर्फ जूता ही छीना था, या पकडकर मारा भी था' ?
    " ऐसी कोई बात नही, मैंने अपना सफेद नाइक ब्रांड जूता एक दुबले पतले गरीब भिखारी को दान दे दिया, बेचारा बहुत दिनो से काले रंग की पूरानी चप्पल पहनकर घूम रहा था ! उस गरीब की मदद तो  जरूर करनी चाहिए जो दुआ की बजाए बद्दुआ देने आता हो "!
     वर्मा जी अपनी काली चप्पल पहन कर गर्म लू की तरह  बगैर कुछ बोले निकल गये ! मैं अपने अतीत के एल्बम टटोलने लगा !  जूतों को लेकर मेरा अनुभव कभी सुखद नही रहा ! पिछले 30 साल  से जाने कितनी बार महफिलों में  मेरे जूते बदलते रहे ! मै कही भी अपने जूते उतारता,  कोई न कोई अपना छोड़ कर मेरा उठा ले जाता ! कई बार मुझे अपने फटेहाल जूते के बदले बेहतरीन जूते मिल जाते थे ! ( अक्सर चुनावी मौसम मे शाम के वक्त कॉलोनी में' होने वालीं जनसभा मे ये हादसे होते थे, जहाँ जूता बाहर उतार  कर  फर्श पर बैठते थे !) एक बार तो गजब हुआ ! रात नौ बजे मीटिंग खत्म  हुई, मै भीङ से बाहर आया, जल्दी से अपना जूता उठाया पहना और इत्मीनान की सांस ली ! किन्त  एक हफ़्ता बाद जब जूता पालिश करवाने गया तो मोची ने कहा,-' इस बार आपने सिर्फ दायें पैर का जूता बदला है ' !
      मेरी इस समस्या का निदान किसी के पास नही
 है ! जो सुझाव आते भी हैं, उनमें जोखिम बहुत है ! मेरे अजीज दोस्त चुन्ननखान की सलाह है कि-' ऐसी महफिल में  सबसे बाद  मेें घर से नंगे पैर जाओ , और वापसी में थोडा पहले निकलो,और  नंगे पैरों को आत्मनिर्भर कर लो -' !
     जो भी कहूगा सच कहूगा,  जूता बराबर भी झूठ नहीे बोलूँगा ! ये जूता मेरी लाइफ  मेें  अब तक  का सबसे मंहगा जूता था !  मैंने कभी एक हजार रुपये से  ऊपर का जूता  पहना ही नही , शौक भी नही था ! दरअसल मेरे बेटे [ इंजी.  सैयद अमान अली ने अपनी पहली सेलरी  पर मुझे ये जूता गिफ्ट दिया था, वर्ना ऐसी मंहगी और नश्वर चीज़ें दूर ही रहे तो अच्छा ! 
        लेकिन,,,,'घनिष्ठ' मित्र अभी भी कलेजा छलनी करने वाली 'हमदर्दी लेकर आ रहे हैं । अब   चौधरी आ गया, -' उरे कू सुण भारती ! तमै किसी का जूता लेकर भागने की  के जरूरत पङ गी' ?
मैं आसमान से गिरा,- ' कौन कह रहा था ?"
   " नाम मत नै पूछ भारती ! देख, वर्मा ने कसम दे रखी सै, अक मै किसी कू उसका नाम नहीे  बताऊंगा  ! इसलिए नाम कू परे कर, अर नू बता, अक मामला के  है"?
     मैने सारी बात साफ-साफ बता दी !
        चौधरी ने मेरी पीठ पर हाथ मारा, - " जाण दे यार ! मेरठ ते मैं दो जोङी जूता लाया सूं , इब एक तू ले ले -'!
     'शुक्रिया भाई, पर मेरे पास दो जोङी जूते हैं -'! 

       "हम्बे,,,! किस्मत में लिखे हों तो राह चलते  बगैर मांगे जूते मिल जाते हैं-'!
  [ इस बार हम दोनों एक साथ हंस पङे !

  [ जूता सचमुच चोरी हुआ है यार !]
,,,,,,,,,,,      [सुलतान  'भारती']     ,,,,,,,,,,,,,,