Friday, 19 November 2021

(व्यंग्य भारती) "काले कानून बनाम सफ़ेद कानून"

( व्यंग्य भारती)

" काला कानून बनाम सफ़ेद कानून"

    म्हारे समझ में कती न आ रहो अक कृषि कानून इब कूण से कलर का है ! अभी हफ्ता पाच्छे सरकार की नज़र में यू  कानून घणा दुधारू हुआ करता हा ! पर किसानन कू समझाने में सबै फेल हुए ! ता फेर,, देश हित में  ' दरबारश्री ' ने, दुधारू से अचानक बांझ नज़र आने लगे तीनों  कानून कू , वापस ले लिया ! ( बेलाग होकर कहें तो ये फैसला  बड़ी  हिम्मत  और  जोखिम भरा था़ ! जिसने "दरबार श्री ' के समर्थकों और विरोधिओ को सकते में डाल दिया है !)
           विपक्ष और विरोधिओं को किसी करवट चैन नहीं मिलता  !. अब विपक्षी सवाल उठा रहे हैं कि सैकड़ों किसानो की बलि लेने के बाद ही सरकार को  कृषि कानून का नुकसान क्यों नज़र आया ! उसके पहले यही कानून  किसानो को 'मालामाल' करता हुआ नज़र रहा था ! सरकार किसानों को मंहगाई, मंदी और लुटेरों की मंडी से बचा कर आत्मनिर्भर बनाना चाहती थी, लेकिन किसानों को फ़ायदा ही नहीं रास आ रहा था। कमाल है, बौद्धिक चैतन्यता का बड़ा अजीब दौर आ चुका है- लोग अपना फ़ायदा ही नहीं चाहते ! जिस नए कानून से देश के किसान गुफ़ा युग से निकल कर सीधे विश्व गुरु होने वाले थे, उसके ही खिलाफ सड़क पर बैठ गए ! विपक्षी दलों ने तीनों क्रान्तिकारी कृषि कानूनो के विटामिन प्रोटीन और कैल्शियम में घुन ढूढना शुरु कर दिया ! ये हस्तिनापुर की सत्ता के खिलाफ संयुक्त कौरव दलों का सरासर विद्रोह था, फिर भी दरबार श्री के ज्ञानी मंत्री और चारण अज्ञानी  किसानों से - तमसो मा ज्योतिर्गमय - की उम्मीद लगाए बैठे थे!
             सोशल मीडिया के सूरमाओं ने आंख और अक्ल दोनों  पर गांधारी पट्टी बांध ली थी ! ऐसा करने से बुद्धि और विवेक का सारा लावा  ज्वालामुखी की शक्ल में श्रीमुख से बाहर आ रहा था ! इन जीवों की अपनी कोई विचारधारा आत्मचिंतन के आधीन नहीं थी ! इन्हें अधीनता और गुलामी से इतनी नफ़रत थी कि उन्होंने आजादी की एक नई तारीख़ ही ढूंढ कर  निकाल ली ! इन प्रचण्ड वीर समर्थकों के कलम और कलाम दोनो से फेसबुक पर " लावा" फैल रहा था ! आज उन सभी वीर पुरुषों की अक्षौहिणी सेना औंधे मुंह पड़ी है ! कलम कुंद है और गला अवरुद्ध !! अंदर से आग की जगह आह निकल रही है, -' ये क्या हुआ,,,, कैसे हुआ,,, क्यों हुआ !
छोड़ो ये न  पूछो,,,,!!!!"
        लेकिन लोग चुटकी लेने से कहां बाज आते हैं ! तरह तरह के तीर सोशल मीडिया पर उड़ रहे हैं - 'अगला आत्म ज्ञान कब प्राप्त होगा -!' मूर्खो को ज्ञान देने का जोख़िम कौन उठाए ! बुजुर्गों की सलाह तो यह है कि बेवकूफों के मुहल्ले में अक्लमंद होने की मूर्खता नहीं करना चाहिए, वगरना अकेले पड़ जाने का खतरा है-।
दरबार श्री कभी भी कोई कदम ऐसा नहीं उठाते जो "नौ रत्नों" के विमर्श और सहमति के बगैर हो !  बड़े सियासी योद्धा और ज्योतिषाचार्य इस फैसले के पीछे का " लक्ष्य" ढूंढ रहे हैं ! विपक्ष सामूहिक खुशी मनाने की बजाय सामूहिक चिंतन शिविर में बैठ गया है.!
      मगर भक्त सदमे में हैं ! अनुप्राश अलंकार जैसी स्थिति है - नारी बीच साड़ी है या साड़ी बीच नारी है- ? कन्फ्यूजन गहरा गया है !! विषम परिस्थिति है , गांडीव भारी हो गया है ! सोशल मीडिया पर तमाम कौरव योद्धा ललकार रहे हैं ! लेकिन धर्मयोद्धाओं की समझ में नहीं आ रहा है कि पक्ष में पोस्ट डालें या विपक्ष में !! अभी तक जिस कृषि कानून को लागू करने से गंगा पृथ्वी पर उतरने वाली थी,अब बताया जा रहा है कि - राम तेरी "गंगा" मैली,,,,!! अर्द्ध बेहोशी सी चैतन्यता है ! आंखों से गांधारी पट्टी हटा कर भी देख लिया - अंधापन बना हुआ है! लगता है कि आंखों का बुद्धि से संपर्क टूट गया है ! अधर्मी कोलाहल मचा रहे हैं, - आवाज़ दो कहां हो -!! क्रोध में - गाली देने का जी करता है  रे  बाबा....!!
              मित्रों में  'वर्मा ' जी सांड की तरह फुफकार रहे हैं ! निरस्त हुए कृषि कानून की दुधारू उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कह रहे हैं, - ' कानून को वापस लेने से मुझे तो कुछ ऐसा फील हो रहा है जैसे आलू की फसल को  "पाला" मार गया ! देश हित में लाए गए तीनों कृषि कानून खेत और किसानो को नई दशा और दिशा देते ! अब तो सब कुछ दिशाहीन हो जाएगा -!' मैंने पूछने का दुस्साहस किया, -  ' आपको खेती किसानी का बहुत नॉलेज है ! गांव में खेती होती होगी ना -'?  वो आग बबूला होकर बोले, - भैंस का दूध सेहत के लिए फायदेमंद होता है या नुकसानदेह , ये जानने के लिए  भैंस खरीदने की जरूरत नहीं होती मूर्ख -'!
       चौधरी  कन्फ्यूजन में है ! वो अभी तक फैसला नहीं कर पाया कि उसे खुश होना चाहिए या नाराज़ ! कल मुझसे पूछ रहा था , - " उरे कू सुण भारती ! इब  कानून कूण से रंग कौ हो गयो ?" 
  " कौन सा कानून ? सभी कानून एक जैसे ही हैं !"
" घणा वकीड़ मत नै बण ! मैं किसान वाड़े कानून कौ बात करूं सूं ! पहले तो घणा दुधारू बताया हा, इब के हुआ  !  किसने दूध में नींबू गेर दई ! इब घी न लिकड़ता दीखे कती ! इबै और कितनी दुधारू योजना ते मक्खी लिकाड़ी ज्यांगी "?

        मेरे पास तो नहीं है, किसी बुद्धिजीवी के धौरे जवाब हो तो दे दे !
                                                ( सुलतान भारती)
         
    

Friday, 12 November 2021

"असली आज़ादी की खोज !!

"बही खाता"
              " असली आज़ादी की खोज

       अब जाकर घर बैठे मुझे बढ़िया नस्ल का ज्ञान प्राप्त हुआ है ! धन्य हैं कंगना जैसी विदुषी का, जिन्होंने इस घनघोर कलिकाल  में अवतार लेकर  हमें बौद्धिक रूप से दिवालिया होने से बचा लिया !  इस खोज के उपहार में आपको पद्मश्री सम्मान दिया गया , ये हमारे लिए कम मगर विश्व के लिए गौरव की बात है ! पता नहीं  आप को इस खोज की प्रेरणा कहां से मिली ! कुछ लोग तुम्हारी इस दुर्लभ खोज से इतने सदमे में आ गये गोया उनकी जानकारी को लकवा मार गया हो। जो नई खोज के पक्ष में हैं, वो भक्ति में ओतप्रोत होकर गा रहे हैं - ' आप जैसा कोई इतिहासकार आए,,,, तो बात बन जाए -'!!
             लेकिन यहां तो बात बनने की जगह बिगड़ रही है ! आजादी मिलने की नई तारीख़ को लेकर समर्थक और विरोधी ताल ठोकने लगे हैं !  जैसे ही  नई जानकारी का छींटा जनता के मुंह पर पड़ा,, जनता और कथित बुद्धिजीवियों के बीच खाडी युद्ध शुरू हो गया!  विद्वान भक्त वत्सल नई स्वतंत्रता दिवस के पक्ष में फतवा देते हुए कह रहे हैं कि 1947 के मुकाबले 2014 की आजादी में ज़्यादा फाइबर  है ! हम पुरानी तारीख़ में मिली आजादी का बॉयकॉट करते हैं ,क्योंकि उस आजादी से अचानक हमे गुलामी की बदबू आने लगी है ! नई तारीख़ में मिली आजादी ज़्यादा पोटेंशियल है,क्योंकि ये आजादी हमने रामराज विरोधिओ  से अहिंसा के बल पर हासिल की है! वैसे  2014  के स्वतन्तता संग्राम में हासिल आजादी में " मिनरल्स" भी ज़्यादा है !
              वैसे तो इतिहास में खुदाई का कार्य पिछले कई सालों से प्रगति पर है, फिर भी 2016 के बाद से इसमें  बहुत बड़ी बड़ी कामयाबी हासिल होने लगी है ! खोज के इसी कालखंड में देश को पता चला कि ताजमहल दरअसल "तेजोमहल" है ! इस ख़बर से कई लोग शेयर बाजार की तरह औंधे मुंह गिर पड़े ! उन्होंने समझ लिया कि अब तक जो पढ़ा था, - सब धन धूल समान -'! उत्साही नए इतिहासकार फावड़ा उठाए ऐलान कर रहे थे, - सारे घर के बदल डालूंगा ! कई अंधों को अचानक आंख वालों से ज़्यादा नज़र आने लगा ! जिनके सिलेबस में कभी इतिहास था ही नहीं, वो इतिहास के कोलंबस बन बैठे हैं। ! ये खोज करने और कोमा से बाहर आने का स्वर्ण काल है ! इसी दौर में पता चला है कि लाल क़िला, जामा मस्जिद दोनो के नीचे मंदिर है ! यही नहीं कुतुबमीनार का कुतुबुद्दीन ऐबक से कोई लेना देना नहीं है ! इस खुलासे के बाद सैकड़ों लोग हथौड़ा उठाए 'गुलामी के प्रतीक ' ढूंढ रहे हैं !
          जनता पाषाण युग से निकल कर विकास उत्सव के मंडप में  आ गई है ! ज्ञान चक्षु खुल चुके हैं और जाम ख़त्म हो चुका है ! सतयुग क्वालीफाई करने के लिए चरित्र निर्माण ज़रूरी है ! कांग्रेसियों के तमाम आराध्यदेव जांच के दायरे में आए तो बड़े चौंकाने वाले खुलासे हुए !  पता  लगा  लिया  कि देश को रसातल  में  ले   जानें  में हमारे " बापू" सबसे आगे थे !  ( आसाराम बापू नहीं, देश के बापू ! ) वैज्ञानिकों की ऐसी  टीम आई है जो स्वर्गवासी नेताओं के चरित्र का डीएनए टटोल रही है ! विपक्षी पार्टियों के मर चुके कई राष्ट्रीय नेताओं  का नया चरित्र प्रमाण पत्र सामने आया, जिसका पता खुद "स्वर्गीय" हो चुके  नेता  को भी नहीं था ! इस नई खोज के बाद  कई देवदूतो को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया गया !
          देश की आजादी के नए खुलासे के बाद मैं बड़ा धर्मसंकट में हूं! धर्मसंकट ये है कि - 1947 और 2014 दोऊ खड़े , काके लागूं पांय -! अज्ञानियों को जानें कैसे उन्नीस सौ सैंतालीस में आजादी नज़र आ गई थी , जबकि  2014  में मिलने वाली आजादी के ज्यादातर फ्रीडम फाइटर 1950 के बाद में पैदा हुए ! इतिहास और विकास के साथ इतनी बड़ी छेड़खानी पहले कभी नहीं हुई  थी !. हमारे जैसे  अवसरवादी सन सैंतालीस को आजादी का वर्ष समझ कर 1960  के अंदर ही पैदा हो गए  ! लेकिन दो हजार इक्कीस में जब मोहन जोदारो और हड़प्पा से भी गहरी खुदाई हुई तो आजादी की नई तारीख़ बरामद हो गई ! तब से करोड़ों सीनियर सिटीजन अंगारों पर लोट रहे हैं ! वामपंथी इतिहासकारों ने इतनी गलत तारीख़ क्यों डाल दी !! उन्हें तो ये लिखना था कि वगैर आजादी दिए अंग्रेज, सवेरे  वाली  गाड़ी से चले गए थे ! जनता  हॉर्न  बजाती  रहे, जगह मिलने पर उसे चुपचाप आजादी दे दी जाएगी ! आखिरकार  निर्धारित प्रोग्राम के मुताबिक २०१४ में  प्रचंड आजादी मिल गई ! ( फिलहाल अभी गिनती चल रही है  कि  2014   वाले   "स्वतंत्रता संग्राम"  में कितने राष्ट्रभक्त शहीद हुए हैं !      ( पेंशन और पेट्रोल पंप देने के लिए शहीदों से बायोडाटा मांगना बाकी है ! )

      हंगामा है क्यूं बरपा., तारीख़ ही बदली है। अभी तो बहुत कुछ बदला जाएगा ! परिवर्तन की लहर शीत लहर से ज़्यादा कष्ट दे रही है ! मगर विरोधी कितना भी आर्तनाद करें, खुदाई बंद नहीं होगी ! देश की जनता को सच से रूबरू कराने का वक्त आ चुका है ! सबसे पहले इतिहास को गर्म पानी में उबाल कर  कीटाणु रहित किया जाएगा !  राष्ट्रभक्त इतिहासकार "  कुल्हाड़ी और फावड़ा लेकर तैयार बैठे हैं। सोशल  मीडिया के "घटोत्कच"  हर नई खोज को सत्यापित करने में  'खून पसीना' ( खून तुम्हारा पसीना उनका) बहाने में देर नहीं करेंगे!  इसलिए आजादी की नई तारीख़ पर बहस करने से - बच के रहना रे बाबा ! बच के रहना रे ,,,,,!!!

       खुदाई का महापर्व शुरु है !

                          ( सुलतान भारती)